Karnataka High Court: अजन्मे बच्चे को गोद लेना कानून के लिए अज्ञात, कर्नाटक हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी

Karnataka High Court: अजन्मे बच्चे को गोद लेना कानून के लिए अज्ञात, कर्नाटक हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी

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सार

बच्ची के जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता ने उडुपी जिला अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिससे कि मुस्लिम दंपति को उस बच्ची का दत्तक माता-पिता और अभिभावक घोषित किया जा सके। जिसे उन्होंने गोद लिया था। निचली अदालत ने बच्ची के जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता की अर्जी को खारिज कर दिया था।

 

विस्तार

कर्नाटक हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक मामले में सुनवाई करते हुए टिप्पणी करते हुए कहा कि अजन्मे बच्चे को गोद लेने का समझौता कानून के लिए अज्ञात है। न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति के एस हेमलेखा की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए दो साल, नौ महीने की एक बच्ची के माता-पिता की ओर से संयुक्त रूप से दायर याचिका खारिज कर दिया। मिली जानकारी के मुताबिक, बच्ची के जैविक माता-पिता  हिंदू हैं वहीं, उसके दत्तक माता-पिता मुस्लिम हैं।

दरअसल, बच्ची के जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता ने उडुपी जिला अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिससे कि मुस्लिम दंपति को उस बच्ची का दत्तक माता-पिता और अभिभावक घोषित किया जा सके। जिसे उन्होंने गोद लिया था। निचली अदालत ने बच्ची के जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता की अर्जी को खारिज कर दिया था। इसके बाद वे हाईकोर्ट पहुंचे।

इस मामले में हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति के एस हेमलेखा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि समझौते की तारीख के अनुसार, बच्ची अपीलकर्ता संख्या 4 के गर्भ में था और बच्चे का जन्म 26-3-2020 को हुआ था, यानी पार्टियों के बीच समझौते के पांच दिनों के बाद। इस तरह, दोनों पक्षों ने एक अजन्मे बच्चे के संबंध में समझौता किया। ऐसा समझौता कानून के लिए अज्ञात है। जबकि जैविक माता-पिता हिंदू हैं, बच्ची के दत्तक माता-पिता मुस्लिम हैं। अदालत ने इस मामले को खारिज कर दिया।

 निचली अदालत ने इस आधार पर किया था मामला खारिज
मिली जानकारी के मुताबिक, बच्ची के जैविक माता-पिता गरीबी के कारण बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ थे और उसके दत्तक माता-पिता मुस्लिम दंपति निःसंतान थे इसलिए उन्होंने समझौता किया था। समझौते में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्षों के बीच गोद लेने के लिए पैसे का आदान-प्रदान नहीं किया गया था।  ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत ने उनकी याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि इस समझौते से कही से भी यह साफ नहीं होता कि बच्चे का कल्याण होगा। जिसके बाद दोनों जोड़ों ने अपील के साथ निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

वहीं, इस मामसे में सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अगर जैविक माता-पिता बच्चे के बारे में चिंतित थे तो वे इसे कानूनी रूप से गोद लेने के लिए रख सकते थे।

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